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" वीर कुँवर सिंह "

सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधाओं में से एक अप्रतिम योद्धा संवेदनशील, प्रशासक पर्यावरण प्रेमी एवं प्रखर राष्ट्रभक्त बा कुँवर सिंह का जन्म संभवतः सन् 1777 के नवंबर महीने में बिहार प्रदेश के जगदीशपुर में हुआ था। बलिया जनपद के सहतवार में उनकी ननिहाल थी। वे उज्जैन (परमार) वंशीय क्षत्रिय थे। इनके पिता का नाम साहबजादा सिंह तथा माता का नाम पंचतरन देवी था। उन्होंने वर्ष 1826 में अपनी रियासत की गद्दी संभाली और इसके तत्काल बाद समान विचारधारा के स्वाधीनता-प्रेमी राजे-रजवाड़ों से गुप्त रूप से संपर्क करते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की योजना बनानी शुरू कर दी थी। प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों के विरुद्ध ‘बाबू साहब’ का संघर्ष सन् 1857 के मध्य से शुरू होकर अप्रैल 1858 तक जारी रहा। इस कालखंड में कुंवर सिंह लगातार बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश की विभिन्न रियासतों के संपर्क में रहते हुए अपने छापामार युद्ध-कौशल के बल पर अंग्रेजों के दाँत खट्टे करते रहे | हैरत की बात यह है कि उस समय उनकी उम्र अस्सी बरस थी। 23 अप्रेल, सन 1858का दिन भारतीय जनमानस एवं बाबु कुँवर सिंह दोनों के लिए अविस्मरणीय है आज के ही दिन, सीमित संसाधनों, बढ़ती उम्र तथा एक हाथ गंवा चुकने के बाद भी, 'तेगवा बहादुर' के नाम से विख्यात कुँवर सिंह ने अपने प्रचण्ड पराक्रम और चतुराई से अंग्रेज सेनानायक ली ग्रैड को परास्त करके तहलका मचा दिया | बुरी तरह से घायल होने के कारण इस विजय के कुछ ही दिनों बाद 26 अप्रैल को उनका देहान्त हो गया।

          .....कुँवर सिंह कालेज परिवार अपने पुरनियों की इस महान शोध के प्रति रोम-रोम कृतज्ञ है कि उन्होंने ‘राजपूत इंग्लिश हाई स्कूल के नाम से स्थापित इस संस्था का नाम बदलकर उस महान शूरवीर का नाम दिया जिसके व्यक्तित्व-कृतित्व को लेकर रचे गए तमाम लोकगीत, कथायें, माधायें व नाटक, आज भी न केवल बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश तथा नेपाल के चप्पे पर गूंजते हैं.

"जैसे मृगराज गजराजनS कै झुंडन पै

प्रबलS प्रचण्ड सुंडS खंडत उदंड है।

जेसे बाजि लपटि-लपेट के लवान दल

दल मल डारतS , प्रचारतS बिहंड है !

कहै ‘रामकवि' जैसेS गरुण गरब गहि

अहिकुल दंडि-दंडि मेटतS घमंड है!

तैसे ही कुंवर सिंह कीरति अमर मंडी

        फौज फिरंगानी की करिसु खंड-खंड है !"

प्रस्तुति शशि कुमार सिंह प्रेमदेव ( प्रवक्ता / कवि)