कुँवर सिंह इण्टर कॉलेज एक : संक्षिप्त परिचय
कुँवर सिंह इण्टर कॉलेज जनपद की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं में से एक है। इसकी स्थापना, कुछ स्थानीय रइसों के सम्मिलित प्रयास से वर्ष 1942 मे हुई थी। उस समय इसे 'राजपूत इंग्लिश हाई स्कूल के नाम से जाना जाता था और यह अस्थायी रूप से आज के गुलाब देवी रोड पर अवस्थित था। आज़ादी के बाद, इसके संस्थापक सदस्यों ने इसका नाम बदलकर इसे पूर्वांचल के महान योद्धा बाबू कुँवर सिंह के नाम से जोड़ दिया था। अभिलेखों से पता चलता है कि इस कॉलेज में हाई स्कूल की मान्यता वर्ष 1945 में तथा इण्टर की मान्यता वर्ष 1947 प्रदान की गई थी। वर्ष 1971 में यह 'ग्रांट इन एड' पर आने के बाद अशासकीय सहायता प्राप्त विद्यालयों की श्रेणी में आ गया। पुराने लोग बताते हैं कि अपनी स्थापना के साथ ही इस संस्था ने अपनी कीर्ति पताका को फहराना शुरू कर दिया और शीघ्र ही इसकी गिनती पूर्वांचल के चुनिंदा प्रतिष्ठित विद्यालयों में होने लगी। पठन-पाठन व अनुशासन की दृष्टि से तो आज भी यह विद्यालय जनपद के शीर्षस्थ शिक्षण संस्थाओं में शुमार किया जाता है। उल्लेखनीय है कि सन् अस्सी के दशक से हाल के वर्षों तक जब बड़े-बड़े विद्यालय भी कुख्यात 'नकल महोत्सव में लिप्त होने से खुद को नहीं बचा पाये थे, उस अवधि में भी इस विद्यालय ने अपनी शुचिता और सख्त छवि को लगभग बेदाग रखा। यही कारण रहा कि इस विद्यालय में छात्रों का दाखिला प्राय: आसानी से नहीं होता था और यहाँ पढ़ना गौरव की बात समझी जाती रही। हाँ, बीच के कालखंड में बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद रिक्त रहने के कारण पठन-पाठन.... Read More
Short History
" वीर कुँवर सिंह "
सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के पुरोधाओं में से एक अप्रतिम योद्धा संवेदनशील, प्रशासक पर्यावरण प्रेमी एवं प्रखर राष्ट्रभक्त बीर बाबू कुँवर सिंह का जन्म संभवतः सन् 1777 के नवंबर महीने में बिहार प्रदेश के जगदीशपुर में हुआ था। बलिया जनपद के सहतवार में उनकी ननिहाल थी। वे उज्जैन (परमार) वंशीय क्षत्रिय थे। इनके पिता का नाम साहबजादा सिंह तथा माता का नाम पंचतरन देवी था। उन्होंने वर्ष 1826 में अपनी रियासत की गद्दी संभाली और इसके तत्काल बाद समान विचारधारा के स्वाधीनता-प्रेमी राजे-रजवाड़ों से गुप्त रूप से संपर्क करते हुए अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह की योजना बनानी शुरू कर दी थी। प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजों के विरुद्ध ‘बाबू साहब’ का संघर्ष सन् 1857 के मध्य से शुरू होकर अप्रैल 1858 तक जारी रहा। इस कालखंड में कुंवर सिंह लगातार बिहार, उत्तर प्रदेश व मध्यप्रदेश की विभिन्न रियासतों के संपर्क में रहते हुए अपने छापामार युद्ध-कौशल के बल पर अंग्रेजों के दाँत खट्टे करते रहे | हैरत की बात यह है कि उस समय उनकी उम्र अस्सी बरस थी। 23 अप्रेल, सन 1858का दिन भारतीय जनमानस एवं बाबु कुँवर सिंह दोनों के लिए अविस्मरणीय है आज के ही दिन, सीमित संसाधनों, बढ़ती उम्र तथा एक हाथ गंवा चुकने के बाद भी, 'तेगवा बहादुर' के नाम से विख्यात कुँवर सिंह ने अपने प्रचण्ड पराक्रम और चतुराई से अंग्रेज सेनानायक ली ग्रैड को परास्त करके तहलका मचा दिया | बुरी तरह से घायल होने के कारण इस विजय के कुछ ही दिनों बाद 26 अप्रैल को उनका देहान्त हो गया।
.....कुँवर सिंह कालेज परिवार अपने पुरनियों की इस महान शोध के प्रति रोम-रोम कृतज्ञ है कि उन्होंने ‘राजपूत इंग्लिश हाई स्कूल के नाम से स्थापित इस संस्था का नाम बदलकर उस महान शूरवीर का नाम दिया जिसके व्यक्तित्व-कृतित्व को लेकर रचे गए तमाम लोकगीत, कथायें, माधायें व नाटक, आज भी न केवल बिहार बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश तथा नेपाल के चप्पे पर गूंजते हैं.
"जैसे मृगराज गजराजनS कै झुंडन पै
प्रबलS प्रचण्ड सुंडS खंडत उदंड है।
जेसे बाजि लपटि-लपेट के लवान दल
दल मल डारतS , प्रचारतS बिहंड है !
कहै ‘रामकवि' जैसेS गरुण गरब गहि
अहिकुल दंडि-दंडि मेटतS घमंड है!
तैसे ही कुंवर सिंह कीरति अमर मंडी
फौज फिरंगानी की करिसु खंड-खंड है !"
प्रस्तुति शशि कुमार सिंह प्रेमदेव ( प्रवक्ता / कवि)